
Bank Privatization Latest Update in 2025: भारत सरकार ने 5 सरकारी बैंकों में हिस्सेदारी घटाने की योजना की घोषणा की जानें पूरी डिटेल्स
Bank Privatization Latest Update in 2025 भारत सरकार ने हाल ही में एक बड़ा फैसला लेते हुए घोषणा की है कि वह पांच प्रमुख सरकारी बैंकों (PSBs) में अपनी हिस्सेदारी घटाने की योजना बना रही है। यह कदम देश के बैंकिंग सेक्टर में सुधार और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के उद्देश्य से उठाया जा रहा है। इस लेख में हम इस योजना के हर पहलू पर चर्चा करेंगे, जैसे कि किन बैंकों में हिस्सेदारी घटाई जाएगी, इसका उद्देश्य, प्रक्रिया और इससे जुड़े संभावित प्रभाव।
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किन बैंकों में घटाई जाएगी सरकार की हिस्सेदारी?
सरकार ने पांच सरकारी बैंकों की पहचान की है, जिनमें उसकी हिस्सेदारी 75% से कम की जाएगी। ये बैंक हैं:
- बैंक ऑफ महाराष्ट्र (Bank of Maharashtra)
- वर्तमान हिस्सेदारी: 96.38%
- इंडियन ओवरसीज बैंक (Indian Overseas Bank)
- वर्तमान हिस्सेदारी: 96.38%
- यूको बैंक (UCO Bank)
- वर्तमान हिस्सेदारी: 95.39%
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (Central Bank of India)
- वर्तमान हिस्सेदारी: 93.08%
- पंजाब एंड सिंध बैंक (Punjab & Sind Bank)
- वर्तमान हिस्सेदारी: 98.25%
इन बैंकों का चयन इसलिए किया गया है क्योंकि इनमें सरकार की हिस्सेदारी बहुत अधिक है और इन्हें SEBI के नियमों का पालन करने के लिए सार्वजनिक शेयरधारिता बढ़ाने की आवश्यकता है।
सरकार का उद्देश्य क्या है?
सरकार का यह कदम कई महत्वपूर्ण उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उठाया गया है:
- SEBI नियमों का पालन
SEBI के अनुसार, सूचीबद्ध कंपनियों को कम से कम 25% सार्वजनिक शेयरधारिता बनाए रखनी होती है। सरकारी बैंकों को इसके लिए अगस्त 2026 तक का समय दिया गया है। - बैंकिंग सेक्टर को मजबूत बनाना
हिस्सेदारी घटाने से निजी निवेशकों को अवसर मिलेगा, जिससे बैंकों की वित्तीय स्थिति में सुधार होगा। - राजस्व जुटाना
इस प्रक्रिया से सरकार लगभग ₹50,000 करोड़ जुटा सकती है, जिसे अन्य विकास परियोजनाओं में लगाया जाएगा। - प्रतिस्पर्धा बढ़ाना
निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ने से ये बैंक अधिक प्रतिस्पर्धी बनेंगे और ग्राहकों को बेहतर सेवाएं दे पाएंगे।
हिस्सेदारी घटाने की प्रक्रिया
सरकार ने हिस्सेदारी घटाने के लिए दो मुख्य तरीकों को अपनाने की योजना बनाई है:
- ऑफर फॉर सेल (OFS)
इसमें सरकार अपनी हिस्सेदारी खुले बाजार में बेचती है। यह प्रक्रिया पारदर्शी और प्रभावी मानी जाती है। - क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (QIP)
इसमें बैंक बड़े संस्थागत निवेशकों को अपने शेयर बेचते हैं। यह तरीका भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।
इसके संभावित प्रभाव
- बैंकों की वित्तीय स्थिति में सुधार
निजी निवेशकों की भागीदारी से बैंकों की पूंजी बढ़ेगी और उनकी वित्तीय स्थिति मजबूत होगी। - बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी
निजी क्षेत्र की भागीदारी से बैंक अधिक प्रतिस्पर्धी बनेंगे और ग्राहकों को बेहतर सेवाएं मिलेंगी। - सरकार के लिए राजस्व सृजन
इस प्रक्रिया से सरकार को बड़ी राशि प्राप्त होगी, जिसे विकास परियोजनाओं में लगाया जा सकेगा।
निष्कर्ष
भारत सरकार का यह कदम बैंकिंग सेक्टर में सुधार और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल बैंकों की वित्तीय स्थिति मजबूत होगी, बल्कि ग्राहकों को भी बेहतर सेवाएं मिलेंगी। साथ ही, सरकार को इस प्रक्रिया से राजस्व जुटाने में भी मदद मिलेगी।
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